सीता चालीसा (Sita Chalisa)

॥ दोहा ॥

बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम।
राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥

कीरति गाथा जो पढ़ें सुधरैं सगरे काम।
मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम ॥

॥ चौपाई ॥

राम प्रिया रघुपति रघुराई।
बैदेही की कीरत गाई ॥

चरण कमल बन्दों सिर नाई।
सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥

जनक दुलारी राघव प्यारी।
भरत लखन शत्रुहन वारी ॥

दिव्या धरा सों उपजी सीता।
मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥

सिया रूप भायो मनवा अति।
रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥

भारी शिव धनु खींचै जोई।
सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥

भूपति नरपति रावण संगा।
नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥

जनक निराश भए लखि कारन।
जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ॥

यह सुन विश्वामित्र मुस्काए।
राम लखन मुनि सीस नवाए ॥

आज्ञा पाई उठे रघुराई।
इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ॥

जनक सुता गौरी सिर नावा।
राम रूप उनके हिय भावा ॥

मारत पलक राम कर धनु लै।
खंड खंड करि पटकिन भू पै ॥

जय जयकार हुई अति भारी।
आनन्दित भए सबैं नर नारी ॥

सिय चली जयमाल सम्हाले।
मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥

मंगल बाज बजे चहुँ ओरा।
परे राम संग सिया के फेरा ॥

लौटी बारात अवधपुर आई।
तीनों मातु करैं नोराई ॥

कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा।
मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ॥

कौशल्या सूत भेंट दियो सिय।
हरख अपार हुए सीता हिय ॥

सब विधि बांटी बधाई।
राजतिलक कई युक्ति सुनाई ॥

मंद मती मंथरा अडाइन।
राम न भरत राजपद पाइन ॥

कैकेई कोप भवन मा गइली।
वचन पति सों अपनेई गहिली ॥

चौदह बरस कोप बनवासा।
भरत राजपद देहि दिलासा ॥

आज्ञा मानि चले रघुराई।
संग जानकी लक्षमन भाई ॥

सिय श्री राम पथ पथ भटकैं।
मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥

राम गए माया मृग मारन।
रावण साधु बन्यो सिय कारन ॥

भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो।
लंका जाई डरावन लाग्यो ॥

राम वियोग सों सिय अकुलानी।
रावण सों कही कर्कश बानी ॥

हनुमान प्रभु लाए अंगूठी।
सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥

अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा।
महावीर सिय शीश नवावा ॥

सेतु बाँधी प्रभु लंका जीती।
भक्त विभीषण सों करि प्रीती ॥

चढ़ि विमान सिय रघुपति आए।
भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ॥

अवध नरेश पाई राघव से।
सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥

रजक बोल सुनी सिय बन भेजी।
लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥

बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो।
लवकुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ॥

विविध भाँती गुण शिक्षा दीन्हीं।
दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥

लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी।
रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥

भूलमानि सिय वापस लाए।
राम जानकी सबहि सुहाए ॥

सती प्रमाणिकता केहि कारन।
बसुंधरा सिय के हिय धारन ॥

अवनि सुता अवनी मां सोई।
राम जानकी यही विधि खोई ॥

पतिव्रता मर्यादित माता।
सीता सती नवावों माथा ॥

॥ दोहा ॥

जनकसुत अवनिधिया राम प्रिया लवमात।
चरणकमल जेहि उन बसै सीता सुमिरै प्रात ॥